Friday 20 November 2015

स्वातंत्र्य वीर बाबू लोमराज सिंह

व्यक्तित्व एवं कृतित्व 

          परिचय 

नाम- बाबू लोमराज सिंह 

पिता- श्री सुबा सिंह 

जन्म- मार्च 1832

पेशा- किसानी 

निधन-अक्टूबर 1928

BABU LOMRAJ SINGH
BABU LOMRAJ SINGH
भारतीय स्वातंत्र्य आन्दोलन का महत्वापूर्ण अध्याय चम्पारण सत्याग्रह के महत्वपूर्ण पुरोधा थे बाबू लोमराज सिंह और इनके अदम्य उत्साह, अप्रतिम आशा और जुझारू संघर्ष का ही प्रतिफल हुआ की चम्पारण सत्याग्रह का केंद्र बिंदु बना इनका गाँव जसौली जो आज जसौली पट्टी के नाम से जाना जाता है । ये सच्चे अर्थ में किसान नेता थे जिनकी अगुआई में पीपर एवं तुरकौलिया नीलही कोठियों से सम्बद्ध हजारों किसान नीलहे साहब के अत्याचार, अनाचार और शोषण के विरुद्ध निर्णायक आन्दोलन पर उतर गए थे । उक्क्त आन्दोलन को ही  निर्णायक मोड़ तक पहुचने के लिए 1917 में कांग्रेस नेता मोहनदास करम चंद गाँधी चंपारण आये थे । जो यहाँ 'बाबा' कलाए और महात्मा बनकर लौटे । गाँधी जी ने 15 अप्रैल 1917 को चम्पारण आगमन के बाद अपना कार्य प्रभार करने के लिए बाबू साहेब को ही चुना था तथा 16 अप्रैल 1917 की सुबह जसौली पट्टी के लिए चल पड़े जहाँ किसान आन्दोलन को कुचलने के लिए इनके साथ दमनात्मक करवाई की गयी थी।गाँधी जी के लिए उस समय चंपारण में जसौली से अधिक उपयुक्त धरती नहीं थी जहाँ वे सत्याग्रह का बीज डाल सकें ।  गाँधी जी की जसौली यात्रा से नीलहों के ही नहीं जिला प्रशासन तथा तत्कालीन ब्रिटीश सरकार के कण खड़े हो गये तथा उनके भ्रमण पर प्रतिबन्ध लगाते  हुए तत्कालीन कलक्टर मि० हेकौक ने उन्हें जिला छोड़ने का आदेश दिया । गाँधीजी  अपने धुन के पक्के थे तथा बाबू लोमराज सिंह भी अपने इरादे के मजबूत । सरकारी प्रतिबन्ध से दोनों में किसी का उद्देश्य बाधित नहीं हुआ। गांधीजी रस्ते में  चंद्रहिया के पास से स्वयं सरकार  से निपटने के लिए जिला मुख्यालय मोतिहारी लौट गये लेकिन उन्होंने अपने सहयोगी रामनवमी प्रसद, धरनीधर प्रसाद दोनों वकीलों तथा अन्य को चम्पारण सत्याग्रह का सूत्रपात करने के लिए जसौली भेजा।जहाँ उनलोगों ने बाबू साहेब के विरुद्ध की गयी दमनात्मक कारवाइयों को देख तथा चम्पारण सत्याग्रह का सूत्रपात करते हुआ उन्ही के दरवाजे पर किसानों का बयान दर्ज कर एक पोथी बनायीं जो आगे चल कर महीने भर में चम्पारण सत्याग्रह का पोथी हो गई । जिसमे किसानों पर अत्याचार की करुणा कथा दर्ज थी ।
बाबू लोमराज सिंह ने १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम  "सिपाही विद्रोह" को उभरते तथा विफल होते देखा था। बेतिहा राज को पराभूत होते तथा उससे पट्टे पर जमीन लेकर निल्हें साहबों को उभरते, निरीह किसानो को उनकी दमन चक्की में पिसते तथा इस अन्याय के साथ सरकार की शक्ति  को सहयोग करते देखा था। उनकी चित्कार कर उठी थी। उनके अन्दर विरोध की चिंगारी फुट रही थी। लेकिन वे उसे एक शोला बनाने का अवसर देख रहे थे। वे शक्ति संग्रह कर रहे थे तथा लोकविश्वास जूता रहे थे। इस बिच अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए वर्तमान पश्च्मि चंपारण के किसान शेख गुलाब और शीतल राय उठे लेकिन उन्हें दबा दिया गया। उस समय चंपारण में शिक्षा की बेहद कमी थी तथा उनके आभाव में संघर्ष सफल नहीं हो रहा था । कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति अंग्रेजों के खिलाफ आगे नहीं आ रहा था । इसी बिच अंग्रेज साहब मी0 एमन के दमन के शिकार पंडित राजकुमार शुक्ल हुए । पंडित शुक्ल ने जब विरोध का झंडा तो उन्हें बाबू लोमराज सिंह की शक्ति मिल गई । बाबू साहेब तो लम्बे समय से अंग्रेजों से क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे थे ल्र्किन इन्हें समुचित सफलता नहीं मिल रही थी। मुक़दमे में धन का व्यय भी सीमा छू रही थी। जिसमे बाबू  लोमराज सिंह को अपने मोतिहारी के वकील टोला का शहरी आवास वकील सबह को फ़ीस में गवाना पड़ा। उन्होंने तिरहुत के कमिश्नर को सात सौ किसानो के हस्ताक्षर से युक्त बढे हुए लगान के विरुद्ध आवेदन दिया। अपने अन्दर विरोध की चिंगारी को शोला तो बना लिया लेकिन वह तब धधका जब पंडित राजकुमार शुक्ल तथा बाबू साहेब के वकील बाबू गोरख प्रसाद की बुद्धि उसमे मी गई । गाँधी जी चंपारण आये ये तो सर्वविदित है लेकिन यह इतिहास के पन्नो में दब कर रह गया है कि पटना आने के बाद जब गाँधी जी मगन लाल को पत्र लिख कर अपना कार्यक्रम बदल कर लौटने की तयारी कर रहे थे तो बाबू लोमराज सिंह ही ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने गाँधीजी से कहा कि उन्होंने अपना सब कुछ  गंवाया है गाँधी के आशा और विश्वास पर, अगर गाँधी चंपारण नहीं गए तो वे गंगा नदी में कूद कर आत्महत्या कर लेंगे परन्तु लोकविश्वास गंवाने  चंपारण नहीं जायेंगे। गाँधी जी को अपना मन बदल कर चंपारण आना पड़ा था फिर उसके बाद जो हुआ वह भी सब जानते है। चंपारण एग्रेरियन एक्ट गाँधी के चंपारण सत्याग्रह के साथ बाबू लोमराज सिंह के किसान आन्दोलन की सफलता थी । सरकारी प्रतिवेदनो से ज्ञात होता है की पिपरा और तुरकौलिया कोठी के सहबो पर इन दोनों भाइयों बाबू भीखू सिंह और बाबू लोमराज सिंह का खौफ था। अपनी जनता में ये इतने लोकप्रिय थे की उस समय लोग इन्हें सोराज (स्वराज) सिंह पुकारने लगे थे । चम्पारण के जिलाधिकारी डब्लू बी हेकौक ने तिरहुत डिवीज़न के कमिश्नर एल एम मोर्शेड को  फरवरी १९१७ को एक पत्र प्रेषित कर कहा की पिपराकोठी निलहा प्रतिष्ठान के प्रबंधक जे बी नॉर्मन द्वारा बताया गया है की दो व्यक्ति लोमराज सिंह के यहाँ ठहड़े हुए है उनलोगों को गुप्त रूप से ले० गवर्नर द्वारा नियुक्त किया गया है जो लोमराज सिंह के आन्दोलन एवं उससे जुड़े तमाम तथ्यों की जानकारी संग्रह करेंगे लेकिन में अश्वक्त हूँ की इलाके में एक भी व्यक्ति नहीं है जो लोमराज सिंह के खिलाफ बोल सके.बिहार सरकार द्वारा 1963 में प्रकाशित महात्मा गाँधी मूवमेंट इन चंपारण पुस्तक में पृष्ट संख्या 46 पर छपी चंपारण के जिलाधिकारी का पत्र जिस से यह साबित होता है की अंग्रेजों को बाबू लोमराज सिंह के ताकत का अंदाजा लग चूका था और वे नहीं चाहते थे की इनकी आन्दोलन सफल हो पाए
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